उठो भवानी
उठो भवानी शंखनाद कर,
चंडमुंड फिर आया है।
रणभूमि में असंख्य रक्तबीज ने,
फिर जग में उपलाया है।
तुझे है समझा अबला नारी,
कोमल तन मन की एक बेचारी।
शिशुपालन की बस प्रतिमूरत,
अवलोकन की ही तू सूरत।
पुरुषप्रधान की तू छाया है,
पर ,तू रणभेरी तू सिंहनी ,
तुझे समझ न पाया है।
उठो भवानी शंखनाद कर,
चंडमुंड फिर आया है।
तुझे है समझा ललित लता तू,
मनोरंजन की एक विधा तू।
विवश विचारी तू अभिचारी,
मन तृष्णा की त्रस्त भिखारी,
तू कामुक भाव की माया है,
पर, तू हुंकारी, तू अधिकारी,
तू केसरिया ज्वाल की काया है।
उठो भवानी शंखनाद कर,
चंडमुंड फिर आया है ।
उमा झा🙏