उठो पथिक थक कर हार ना मानो
उम्मीद की किरण बन आया
अँधेरा चीर कर सूरज आया
पंक्षी फिर चहकने लगे गगन में
फिर झरनों ने गीत मधुर गाया
ऋतुओं ने खिलाये फूल
भंवरों ने गुंजन किया
नदिया अपने उद्गम से निकल गई
फिर सागर से जा मिलने को
तुम उठो पथिक
थक कर हार ना मानो
सृजन करो उत्साह मन में
नवजीवन दीपों का
शिखर दे रहा आवाज तुमको
जय हो विजय हो
कर के ये घोषणा
पथ की बाधाओं को दूर करो
करो कुठाराघात मन की जड़ता पर
असंख्य संभावना है तुझ में
जिसे तू साकार कर
जान खुद को पहचान खुद को
तू ही पथ तू ही पथिक तू ही शिखर है
चल की लक्ष्य का आह्वान है
सुशील मिश्रा (क्षितिज राज)