उठो तुम
उठो, उठो तुम
ओ! अघात हुए मन
उठो तुम
हाँ माना संकट तो है
तुम चोटिल भी हो चुके हो
निराशा से उदास भी हो
और कोशिशों से हार चुके हो
मगर, उम्मीदों को टूटने ना दो
खुद को झुकने ना दो
उन चिंताओं के आगे
जो तुम्हें कुचल रही हैं
जो बार-बार तुम्हें कमजोर करती हैं
उन परेशानियों से
संघर्ष करो तुम।
हे मन, मुझे पहचानो
सुनो, मुझे पहचानो
मैं तुम ही तो हूँ
तुम्हारी एक आवाज हूँ
जो तुम्हें बार-बार उठने को कहती है
और एक संबल बनकर
तुम्हें मुश्किलों से बचाते हुए
यह उम्मीद रखती है
के अंत तक
फिर एक बार
और पूरी ताकत से
लड़ो तुम।
ओ! अघात हुए मन
उठो तुम।
शिवम राव मनी