उज्ज्वला छंद (गुरू चेला )
गुरू चेला संवाद
( गुरु कुल में )
गुरू कथन
उज्ज्वला छंद
10/5/पर यति 15 मात्राएँ
अंत में रगण अर्थात 212
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माथे में व्यापी पीर है
आँखों से बहता नीर है।
चिंता की घनी लकीर है।
बदली कैसी तस्वीर है ।।
कुछ तुमसे कहना, व्यर्थ है।
समझाने का क्या, अर्थ है।
लिखते बनता नहिं, छंद है ।
आ रही कपट की, गंध है ।।
आयोजक सारे पंच हैं।
हिट फिट संयोजन,मंच हैं ।
मौलिकता का क्या, काम है
हिंदी का मालिक, राम है ।
करके जुगाड सब,छाय हो।
यह भंग फ्री की ,खाय हो ।
चुटकले सहारे, नाव है ।
मँहगा बजार में, भाव है
चल रहे कमीशन खोर हैं,
छा रहे काव्य के चोर हैं।
कवयित्री विविध प्रकार की।
अदभुत लीला श्रृंगार की।।
लिखना पढ़ना बेकार है ।
आकर्षण में ही सार है ।
हो छंद ज्ञान ये, भूल है ।
सुन्दर दिखना ही,मूल है ।
नेताओं के पद चाप के ।
वंदन अभिनंदन आपके।
सब बने निराला पंत हैं।
वक जैसे उजले संत हैं।
माता हिंदी का मान हो ।
कुछ कविता का उत्थान हो।
मर्यादा जिसका बीज है ।
लख तुम्हें आ रही खीज है ।
प्रतिभा सब तेरे पास है ।
बस लगी तुझी से आस है।
कारण ऐसा क्या खास है ।
करता क्यों नहीं प्रयास है
ये सरस्वती का वास है ।
हर कवि वाणी का दास है
जब देखा सत्यानास है।
मेरा मन हुआ उदास है ।।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
14/10/22