उजाले की हिमायत में
बरसों से उजाले की हिमायत में खड़े हैं
मेरे सारे बुज़ुर्ग मेरी हिदायत में खड़े हैं।
मैं जब तलक़ चुप था सब को सुकूँ था
ज़ुबान खोली सब शिकायत में खड़े हैं।
जिनके हक़ का छीनकर बड़ा हुआ हूँ
मेरे बारे में बयाँ देने क़यामत में खड़े हैं।
झूठ के तमाम साथी हमेशा आज़ाद थे
बस सच बोलनेवाले हिरासत में खड़े हैं।
‘क़ैस’ ज़िन्दगी से एक ही तज़ुर्बा मिला
ज़माने पैसेवालों की ख़िदमत में खड़े हैं
जॉनी अहमद ‘क़ैस’