उजला क्षण
उजला क्षण
रात और सहर के बीच
है एक लंबी रात
सुबह शाम जूझता ये मन
कैसे उजला हो क्षण ।
प्रातः किरणों से स्वर्णिम लाली
उल्हसित करती अन्तर्मन असीम
कुछ करने की एक चाह लिए
चलते घर से साहसी अप्रतीम।
चलते रहना ही है जीवन
कर्तव्य परायणता है श्रेष्ठ
पथ में आने वाले बंधन
खुल जाएँ ,संशय न हो शेष।