उगता हुआ कवि
मेरी दोहिती पावनी (चुनमुन) अभी मात्र दो वर्ष की है। पता नहीं इतनी नन्ही – सी जान के भीतर कौन सा कवि ह्रदय विराजमान है कि वह बातें भी अनेकों बार तुकबंदी के तरीके से किया करती है। घर के सदस्य कहते हैं कि कवयित्री बनेगी। नानी पर गयी है। एक दिन तो हद ही हो गयी। मेरी पुत्री अर्थात पावनी(चुनमुन) की मम्मी उसके पास सोई हुई थी। अचानक पावनी उठी और अपनी माँ से बोल पड़ी – –
“मम्मा भूख लगी है कुछ खिला दो न। ”
उसकी मम्मा ने कहा – -” क्या खाओगी ? चपाती बना दूं ? चपाती खाओगी ? ”
यह सुनते ही नन्ही पावनी बोल उठी-” हां मम्मा चपाती खिला दो न।” फिर एकाएक बोली-
“छोती छोती चपाती
एछे एछे गोल गोल बनाती।”
यह सुनकर उसकी मम्मा भी आश्चर्यचकित रह गयी।
ऐसी है हमारी नन्ही कवयित्री महोदया। हमारे कवि उद्यान की एक नवांकुरित नन्ही-सी प्यारी-सी नयी पौध। माँ शारदे उसकी इस कला को भविष्य में आकाश- सी ऊंचाई दे, यही उसकी नानी की ओर से बिटिया को ढेर सारी शुभकामनाएं एवं अनेकानेक आशीर्वाद हैं।
—रंजना माथुर दिनांक 15/07/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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