ईश्वर के नाम पत्र भाग २
हे ईश्वर ! बोलो तुम कैसे हो ?
महसूस होता है बड़े व्यस्त हो ?
हमारे पत्र का नहीं दिया जवाब ,
क्या खता हो गयी कहिए जनाब ।
ज़िक्र धरती के हाल का किया था,
रो रो कर अफसाना बयां किया था ।
ऐ परवरदिगार !कुछ परवाह कर,
इस दुनिया पर कुछ निगाह कर।
सब बदल गया,बदल गए दिन-रात ,
और बदल गयी इंसानों की औकात।
इंसान इसान ना रहा,बन चुका शैतान ,
सुनोगे इसके कुकृत्य तो होगे हैरान।
धूर्त ,पाखंडी,लालची,स्वार्थी,हिंसक ,
नहीं बचा इसमें ज़मीर भी बेशक ।
तुम्हारे द्वारा भेजा हुआ यह रक्षक ,
जिव-जंतुओं का बन गया भक्षक ।
उसी ने बिगाड़ा धरती का सुंदर रूप ,
लुटकर इसके जेवर कर दिया कुरूप ।
न रहा प्रकृति में वो स्वच्छ पर्यावरण,
अब तुम्हीं कृपा करो,आए तेरी शरण।
पहुंचेगी ना जब तक प्रार्थना तुम तक,
हम अर्जियां डालते रहेंगे तब तक ।
तुम्हें तुम्हारा ही गीता संदेश सुनाएंगे ,
व् तुम्हारा भुला वचन याद दिलवाएंगे।
प्रकृति को बना कर स्वयं उसे ही भूले,
कैसे परमात्मा हो !अपनी कृति को भूले।
देखकर धरा का हाल,रहम नहीं आता,
कैसे मौन हो !क्यों तुम्हें क्रोध नहीं आता?
तुम्हारा यह बर्ताव देखकर बड़े हैरान है,
पत्र का जवाब ना देने पर भी परेशान है।
मगर चाहे जो कुछ भी हो हम यूँ ना मानेंगे ,
तुम्हारी नज़रे -करम जब तक ना होगी ,
हम तुम्हें प्रार्थना पत्र भेजते ही रहेंगे ।