ईश्वर की रहस्य
आज गृह – गृह में हो रहा ,
ईश्वर की जयघोश दिव्य ,
अपनी इच्छा पूर्णता को ही
करते मनुज अराधना इनकी।
कौन कहता ईश्वर नहीं है?
अरे! हम कहते ईश्वर है ,
निपट तनु – मत में समालो ,
भर्त्सनाओं का विरोधी गढ़ों ,
उत्कृष्टों का प्रतिपादन करो ,
तुम्हें स्वय के अभ्यंतर से ही ,
ईश्वर का परिज्ञान होता हमें।
आकांक्षा उन्हीं की पूरी होती ,
जो सच्चे मानस से अर्चना करते ,
आकांक्षा ना उनकी पूरी होती ,
जो करते आकांक्षा का आडंबर हैं।
ईश्वर भी एक मन्वंतर में ,
होते हमारे जैसे मनुज थे,
मनुजों की सेवा, रक्षा से ही ,
पुण्य के साम्यवाद गढ़ गए ,
मनुजों ने जयघोश की इनकी ,
दिलों के वह भूपति गढ़ गए ,
और अपनी अवधि के पश्चात ,
मनुजों में वह ईश्वर गढ़ गए।
ईश्वर का स्वरूप गढ़ना है तो ,
सत्यवादी के साहचार्य सेवा का प्रण,
निर्वाच्यों की सदैव त्राण करना होगा।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या