ईश्वर कहाँ मिलें
हर मंदिर के चौखट पर है शीश झुकाया,
हर सांध्य गीत में ढोलक पर थाप लगाई,
वेदों ऋचाओं को पढ़ पढ़कर है तलाशा,
हर अजान में मन में है एक आस जगाई।
पर ईश्वर मिले नही हर दर भटकी आरती गाई।
देखा तड़पते प्यास से एक पथिक प्यासे को,
झट दौड़ी उसकी प्यास बुझाई।
भूख से बिलखते बच्चे को देख दर्द उभरा,
फिर जतन अनेकों कर उसकी भूख मिटाई।
तृप्त हुआ मन जैसे मैंने अमूल्य निधि पाई।
दर्द में कराहते देख जब मरहम बन गयी,
उदास होठों पर मुस्कान का कारण बन गयी।
हर रोती आँखों के आँसू पोंछने को प्रयासरत,
उनके बुझे उम्मीदों को जगाने का कारण बन गयी।
फिर बन सहारा जिजीविषा को मैं बढाई।
निश्चल भाव से मैं मदद करती रही सबकी,
मन को सुकून मिला जैसे ईश्वर को है पाईं।
और फिर लगा
बहुत ढूंढा उन्हें पूजा श्लोक स्तुति में,
अंत में भगवान मिले मुझे सहानुभूति में।