ईर्ष्या
जन-जन में ईर्ष्या बसती है
समय-समय पर डसती है।
रातों को नींद नहीं आती
मन में आग सी लगाती
हर पल बेचैन रहते हैं
बेमतलब पीड़ा सहते हैं
बिना पानी सब की कश्ती है
जन-जन में ईर्ष्या बसती है।
आदमी तो छला जाता है
कई बार जान चला जाता है
केवल पछतावे रह जाते है
आंखों से आंसू बह जाते है
पूरी जिंदगी कसकती है
जन-जन में ईर्ष्या बसती है।
दूसरों को जलाना छोड़ दो
जीवन को शीतल मोड़ दो
मन को मन से मिलाओ
ना जलो ना ही जलाओ
जीवन ना इतनी सस्ती है
जन-जन में ईर्ष्या बसती है।
नूर फातिमा खातून
जिला कुशीनगर