ईर्ष्या
कड़ी मेहनत-मजदूरी की बदौलत दो वक्त के चूल्हे जल जाया करते थे। रोटियाँ मुस्कुराती हुई दिख जाती थीं। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की फीस, स्कूल ड्रेस, कॉपी-किताबें और कुछ जरूरी खर्च बजट बिगाड़ देते थे।
बसन्त को कम्पनी में 12 घण्टे की ड्यूटी देनी पड़ती थी, लेकिन कभी-कभी बजट सन्तुलित करने के लिए ओवरटाइम (ओ.टी.) करने पड़ते थे। एक बार उसे लगा कि कहीं आने-जाने के लिए दोपहिया वाहन तो रहे, यह सोचकर उसने डाउन पेमेण्ट में एक स्कूटी खरीद ली।
स्कूटी को देखकर कुछ पड़ोसियों को ईर्ष्या होने लगी। धीरे-धीरे पड़ोसियों ने स्कूटी की मंगनी चालू कर दी। बसन्त सीधा-सादा था। उसे बहाना बनाना नहीं आता था। अब पारिवारिक बजट असन्तुलित होने लगा।
रात-दिन के ये लफड़े देखकर शायद सबसे अधिक ईर्ष्या तो पत्नी माधवी को होने लगी, क्योंकि खून-पसीना अब तेल के रूप में जलने लगा था, मगर प्रकाश विलुप्त था।
मेरी प्रकाशित 45वीं कृति :
दहलीज़- लघुकथा संग्रह (दलहा, भाग-7) से…
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
श्रेष्ठ लेखक के रूप में
विश्व रिकॉर्ड में दर्ज।