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2 Sep 2020 · 2 min read

” अपनी ही गरिमा खोती स्त्री “

आज दोपहर के खाने पर रीदिमा की चाची सास अपने बेटी दमाद के साथ उसके घर आ रहे थे , आ तो वो मुंबई से दो दिन पहले ही गये थे लेकिन सबसे मिलते मिलाते एक दिन पहले ग्राउंड फ्लोर पर सास और जेठ के पास आ गये थे । रीदिमा के हाथों का स्वादिष्ट खाना खा कर उसके हाँथों से बने सिरामिक का आर्ट वर्क देखने लगे उनका मुँह तारीफ करते ना थक रहा था…चाची सास के दमाद बार – बार कह रहे थे बांबे में अपनी प्रदर्शनी लगाओ बहुत कम लोग इस तरह का काम करते हैं तुम्हारा काम तो सबसे हट कर है । तारीफ किसे अच्छी नही लगती उपर से सच्ची मेहनत और लगन से किए गये काम को सराहना मिल रही थी तो रीदिमा को बहुत अच्छा लग रहा था…बातों का क्या है जब तक चाहो करते रहो लेकिन शाम को चाची सास को कही और जाना था रीदिमा अपने पति के साथ सबको छोड़ने नीचे चली गई नीचे उसकी सास बेसब्री से इंतज़ार कर रहीं थी सीढ़िया ना चढ़ने के कारण ( पैरों में दर्द था ) आज दोपहर के खाने और बातचीत का हिस्सा ना बन पाने के कारण बहुत बेचैन हो रहीं थी सब लोग नीचे उतर कर फिर से उनके सामने खाने और आर्ट वर्क की तारीफ करने लगे ( उनको रीदिमा की तारीफ एकदम बर्दाश्त नही होती थी ) जैसे ही चाची सास के दमाद ने उनके सामने प्रदर्शनी की बात बोली तुरंत वो बोल उठीं हाँ हाँ जाओ – जाओ अपना सामान पचास – पचास रूपये में बेचो ये सुनते ही वहाँ कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया किसी को कुछ समझ में नही आ रहा था की क्या बोलें , दमाद से चुप न रहा गया वो बोल उठा ताई जी आपको पता है रीदिमा का आर्ट वर्क कितना कमाल का है ? मुँह बना कर रीदिमा की सासू फिर बोलीं मुझे पता है मिट्टी का समान कैसा होगा…दमाद ने धीरे से रीदिमा से कहा ” स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होकर अपनी गरिमा खो देती हैं ये सुन रीदिमा मुस्कुरा दी उसके लिए ये सब कुछ भी नया न था ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 28/08/2020 )

Language: Hindi
262 Views
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