ललित तलेजा की ईमानदारी
ईमान अभी भी बाकी है,आज खुदी ने देखा पाया।
गिरा जेब से बटुआ मेरा,पाया उसने जब लौटाया।।
जेब टटोली खाली पायी,
मन बेचैनी में ख़ूब फिरा,
तोशाम शहर में पर्स कहीं,
बाईक चलाते वक्त गिरा,
एटीएम कार्ड निज काग़ज़,सत्रह हज़ार की थी माया।
कॉल कहीं से फिर इक आया,उसने सारा हाल सुनाया।।
ललित तलेजा नाम उसी का,
जिसको मेरा पर्स मिला था,
मिलकर उससे आज सही में,
दिल मेरा भी देख खिला था,
शॉप दवाओं की उसकी है,बसअड्डे के समक्ष भाया।
दिल में घर कर बैठ गयी है,ईमानजड़ी मन की छाया।।
सीख सभी जन इससे लेना,
भारत सदियों पूजा जाए,
भूले से भी मन में यारों,
लालच घर ना करने पाए,
ईमान रहे जन घर-घर में,स्वर्ग धरा हो देख सुझाया।
सच्ची मेरी यार कहानी,करती अपना एक पराया ।।
कुछ लोग चुराते हैं धन को,
कुछ लोग चुराते हैं मन को,
पर चरित्रवान सदा छूते,
हर मानव के ही जीवन को,
सच का जिंदा रहता साया,मिट जाए चाहे ये काया।
यार सलाम उसी को प्रीतम,जो अपने दिल को छू पाया।।
आर.एस.प्रीतम
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