ईमानदार की मौत हो जाती है (मार्मिक कविता)
जहाँ सौ मे नब्बे लोग झूठें हो?
स्वार्थ से भरा झूठ ही झूठ हो?
फिर कौन करेगा ईमानदारी की बात?
झूठ के आगे ईमानदार की मौत हो जाती है?
इस स्वार्थ भरे युग मे ईमानदारी की बात?
मतलब दर दर की ठोकरें खाओ?
जिससे भी कहो ईमानदारी की बात
वही हमे वेबकूफ समझता है?
नियम क़ायदे और सच्ची बातों का गला घोंट दिया जाता?
अब तो झूठे गवाह बनाकर भी हरा दिया जाता है?
ईमानदारी से रहो तो लोग चैन से जीने नहीं देते?
जबरदस्ती भी ज़ुल्म यातनाओं से डरा दिए जाते?
झूठे लोग ही हमेशा मालामाल रहते?
ईमानदार तो भूखे ही मर जाए?
कोर्ट कचहरी सब बिके हुए
न्याय व्यवस्था के जज भी बिक गए
झूठे गवाह भी बिकते और ख़रीदे जा रहे
बेबश ईमानदार की तो मौत हो जाती है?
कवि- किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)