ईद का चाँद
चाँद पूनम का बन…!
तू उतरा प्रिये…
चाँदनी बन….
मैं कदमों तले बिछ गयी….!
खिल गया था..
हँसीं हर मन्ज़र वहाँ…
आ तूने रखे थे….
जहाँ पर कदम…..!
आहिस्ता-आहिस्ता …
बुहारा प्रिये….
अँखियों से अपनी….
मेरा गुलबदन…!
आगोश में ले….
सजाया साँवरा…
मुहब्बत में तेरी थे मदहोश हम….!
सजा आ लवों पर….
मुरलिया सा तू …
सुरों से सुरों को मिलाकर प्रिये…!.
चुन चुन सितारे…
चुरा अर्श से…
लिखी इक अज़ब ही….
नई दास्ताँ…!
झरोखे से नैना – निहारे हैं रस्ता….
अब तो बतादे ..
‘माही’ तू मुझको..
ईद का चाँद…
बन… क्यूँ..?
हुआ आजकल गुम…!
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’ पंचकूला