इज़हार
तुम मिलते हो दिल खिलता है
तुम हँसते हो दिल खिलता है
वक़्त कभी जब ऐसा आएगा
दिल तुमसे कुछ कहना चाहेगा
जब होंठ हमारे आपस में सिल जाएंगे
और जुबाँ को लब्ज नहीं मिल पाएंगे
जब दिल में कैदी जज्बातों तक
हाँथ पहुँच ना पाएँगे
दिल ने तुमको चाहा कितना
जब तुम्हें बता ना पाएंगे
तब क्या तुम झांकोगे
मेरी आँखों वाले तहखानों में?
और टटोल सकोगे दिल के
भीतर के सामानों में
पढ़ लेने को अनकहे लफ्ज़
जज्बातों के कोरे पन्ने?
तुम झांकोगे तुम पाओगे
हैं प्यार भरे कोने कोने
तुम देखोगे जर्रे जर्रे में
प्यार प्यार ही बेशुमार
खामोश मगर सब कुछ कहता
सहमा सहमा कुछ बेकरार
जब इन कोरे पन्नों पर अपनी
नाजुक उँगलियाँ फिराओगे
तो खुरदरे उभारों में अपना ही
नाम लिखा तुम पाओगे
संजय नारायण