इस शहर में
जगमगाती चाँदनी है इस शहर में
खूबसूरत यामिनी है इस शहर में
सर्द मौसम है,बिछा यादों का कोहरा
धूप लेकिन गुनगुनी है इस शहर में
डूब जाएगा ये दिल मदहोश होकर
इक नशीली रागिनी है इस शहर में
किस तरह कोई बचेगा बारिशों से
हर घटा ही सावनी है इस शहर में
देखकर रुख बादलों का लग रहा है
अब हवा भी अनमनी है इस शहर में
हम छुपायें किस तरह जज़्बात अपने
हर नज़र ही छावनी है इस शहर में
दो बदन इक प्राण हों हर दोस्ती के
नींव ऐसी डालनी है इस शहर में
बस तुम्ही तुम दीखते हो हर जगह पर
हर फ़िजां मनभावनी है इस शहर में
‘अभि’अब किस तरह जी पाएगा
मौत की चादर तनी है इस शहर में
© अभिषेक पाण्डेय अभि