इस बार पछुआ कुछ ऐसी चली,
इस बार पछुआ कुछ ऐसी चली,
यादों की मानो साँसे चली,
जो दबा था बरसों से दिल की गली,
उसे देख जीवन में हलचल मची।
इस बार पछुआ कुछ ऐसी चली …….
भूली -बिसरी बातों की महफ़िल, फिर सजी ।
जो दूर हुए थे -समय के चलते ,
उनसे किसी बहाने से मुलाकातें , फिर से हुई ।
जिनका ज़िक्र दफ़न था दशकों से,
वहीं महफ़िलों की शौहरत बनी ।
इस बार पछुआ कुछ ऐसी चली …….
दिल में फिर से घंटी बजी ,
जिसे मेरी रातों की नींद उड़ी ,
घर की शांति , कब अशांति बनी ,
इसकी ख़बर भी मुझे न हुई ।
इस बार पछुआ कुछ ऐसी चली …….
देती है सबको शीतलता,
फिर मेरे लिए ही क्यों दहकी ।
इस बार की पछुआ है क्यों रूठी ??