इस पार …
इस पार …
सूने तट पर खड़ी समेटे
विरह-मिलन की वेदना
उत्ताल तरंगे आंक रही
मेरी निस्पंद सी चेतना
उमड़ती लहरों पार बसेरा
बाट जोहती बेसुध इस पार
नाविक निठुर,ले चल तेरे अंचल
सौंपी तुझको जीवन की पतवार
सुन मेरा नीरव आह्वाहन
पुकार लेता जो एक बार
लहरों की तरणी बना मैं
मिल आती तुझसे उस पार
रेखा