इस देश को आगे कौन बढ़ाएगा
उत्कृष्ट ,प्रतिष्ठित ,समाजवाद में
घुल मिल गई है कायरता की वायु,
ऐसे धूमिल पर्यावरण में
आशियाने कौन बनाएगा ।
सर्वश्रेष्ठ थे जो पथ प्रदर्शक
वह भी मगरूर हो रहे हैं,
शतरंज रुपी जीवन जीवन में
कामयाबी के आईने कौन दिखाएगा ।
विश्वास था जिस मंदिर की
वो भी हमारा दर्द बन गई है,
वही बेवफा की गोद में
लाडले को पढ़ने कौन भेजवाएगा।
किलकारियां थम गईं हैं
नन्हे पैरों से जमीं हट गई है,
क्यूं न कितनी शोहरत हो
सूने घर में खुशियां कौन मनाएगा।
घर ,समाज और देश के सम्मान को
राहों पर चलना हो गया है मुश्किल,
ऐसे उम्मीदों के देश में
आजादी के दीपक कौन जलाएगा ।
तीर लगी जब किसी गुमशुदा के
मात्र अखबारों में सिमट कर रह गई,
उस असहाय के जख्मों पर
मरहम कौन लगाएगा।
हिमालय जैसा गंभीर होते थे ऋषि
आज जो निर्लज्ज हो गए हैं,
उनकी मौजूदगी में खुदा की चौखट पर
मन्नत कौन मनाएगा ।
हर मोड़ पर ठोकर सह रही है सुहागन
इग्नोरेंस बन गई है इनकी आदत,
ऐसे दौर में अपनी कोख में
बेटी के लिए ख्वाब कौन बनाएगा ।
शान है बेटी जिस देश में
जब न रहेगी उनकी स्वास,
तो अधर में लटके इस देश को
आगे कौन बढाएगा।