इस गुलिस्तान को महका दो
जिन्दगी खत्म हो जायेगी
यह मुझे खबर है !!
कह दूं अलफ़ाज़ जो दिल में
मेरे बाकी रह गए हैं !!
प्यार की दास्ताँ को लेकर
दुनिया में पैदा हुआ था !!
जाने से पहले क्यूं न
लूटा दूं इस को (प्यार) इस जहाँ में !!
वो ऊपर बैठा येही तो पूछेगा
भेजा ही था तुझे इसी के वास्ते !!
तुने वो अलख जगा दी जहाँ में
जिस के लिए मैं भी बेताब था !!
नज़रों में गिर न जाना दुनिया वालों के
नहीं तो ऊँगली मुझ पर उठेगी !!
वो यही कहेंगे सभी के सामने
दर पे तो बहुत जाता था पर
निकला वो अपने वास्ते !!
गरूर करून तो किस बात का
बन्दा मैं सीधा सादा !!
जब जाऊँगा इस जहाँ से
तो कोई हसरत न बाकी होगी
मेरे लिए इस जहाँ में !!
याद करके रो जरूर लोगो तुम उस दिन
जिस दिन मैं न होऊंगा तुम्हारे सामने !!
मैं तो आया था नफरत मिटाने
प्यार बहाने , खुशियाँ लुटाने ,रोशन करने
इस गुलिस्तान को बस महकाने !!
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ