इसरो का आदित्य
वो करेंगे क्या भला, दो कदम जो न चला,
जागने की हो घड़ी पर सुप्त है।
सीढियां जो न चढ़ा, रह गया वहीं खड़ा,
वो देखते ही देखते विलुप्त है।
पर उधर भी देखिये, हो सके तो सीखिये,
विज्ञान अब नहीं रहा, गुप्त है।
कट गईं हैं बेड़ियाँ, सब हटी हैं रूढ़ियाँ,
अब पुरुषों से आगे मातृ-शक्ति है।
कल की जैसे बात है, नारी कमजोर जात है,
पर कौन अब कहेगा, ये अशक्त है।
गणना में जुटी हुईं, रात-दिन डटी हुईं,
लक्ष्य पाना चन्द्र और आदित्य है।
चंद्रमा पे की विजय, शिव-शक्ति से है जय,
रुक कहाँ रहे हैं चलते नित्य हैं।
आज फिर निकल पड़े, देखें हम खड़े-खड़े,
मिशन जिसका नाम आदित्य है।
सूर्य पे निगाह है, मंगल-चाँद जया है,
आदित्य से भी आगे कई आदित्य हैं।
ये कदम रुके नहीं, अब कभी थके नहीं,
आसमान की परिक्रमा ही लक्ष्य है।
नील पदम् कह रहा, अब कठिन न कोई राह,
इसरो की सफलता एक तथ्य है।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”