इश्क़ समन्दर समझ न आया
इश्क़ समन्दर समझ न आया
जितना डूबा उतना पाया
दरपन देखूँ दीखे तू ही
मुझमें तेरा इश्क़ समाया
तुझको सोचूँ तो धड़के दिल
रब ही जाने, ये सब माया
सच कहते हैं लोग सयाने
जिसने खोया उसने पाया
इश्क़ में किसने मंज़िल पाई
उल्फ़त ने सबको ही खाया