इश्क
जाते हुए इश्क को कौन रोए पैहम
बारिश की पहली बूंद थी
मेरी मिट्टी में गिरी और मिट्टी हो गई
मुझ से लिपटी थी दो पल के लिए
मेरे अंदरू में ही कहीं खो गई
रुह की चुनरी की धनक हो गई
~ सिद्धार्थ
जाते हुए इश्क को कौन रोए पैहम
बारिश की पहली बूंद थी
मेरी मिट्टी में गिरी और मिट्टी हो गई
मुझ से लिपटी थी दो पल के लिए
मेरे अंदरू में ही कहीं खो गई
रुह की चुनरी की धनक हो गई
~ सिद्धार्थ