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14 Feb 2019 · 1 min read

इश्क ,मोहब्बत ,प्यार

मेरी आज की रचना
इश्क ,मोहब्बत ,प्यार पर

तुम जानती हो ,
मैं कौन हूँ ।
यह मत समझना कि
मैं नही जानता पर ,
मैं अभी मोन हूँ।

मिले हम एक नदी की तीरे
इश्क की क्यारी में ,,,
सिंचित रंग प्रेम में उदीरे।

खुशबू भरी मुँडेर पर
महकती चहरे की पॉलिस
उतरकर आई थी
तितलियां चालीस।

देख फूल भी मुस्काए
दिल के किसी कोने में जाकर
मेरे मन को हर्षाए।

दीदार में ताजगी बजाती
चली हवाएं राग रंग के सुर में,
लहराती तेरी चुनरी मस्त चूर में।

ले आई वो हवाएं
मोहब्बत का प्याला
ले आई वो साथ मे धूल
रहना साथ का उजाला।

उजाले में हरदम
सुमन के फूल खिले
इसी प्यार में हम ओर तुम मिले।

प्यार की नदी में एक
नयनो का बहता झरना देखा ,
छुपाकर गमो को अंदर रखा ।

मिले हम ऐसे रिश्तो में
जैसे हम एक दूजे के हुए,
इश्क के मदहोश में उलझे हुए।

उतरेगा लगा मुझे
उदासी का रंग
वो झूमकर
आयगा वसन्त।

जब हुए यह पत्ते
टहनी से दूर ,,
रोकर हुआ यह
बसन्त भी मजबूर ।

मौसम की केसी है दीवानगी
मिलने की आतुर धूल मगन में
तिलमिलाते है ये इश्क के बादल
गगन में ।

✍प्रवीण शर्मा ताल
स्वरचित मौलिक रचना

Language: Hindi
265 Views
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