इश्क खुदा का घर
माना हमने कि ये इश्क़ खुदा का घर है।
लेकिन हर किसी को ये कहां मयस्सर है।
जिसपे मरते हैं दीवाने, बने नये अफसाने
दिलदार मेरा जाने क्यों रहता है बेखबर ।
दर्द दिल के हैं बड़े, छुपा सीने में है खड़े
हर आह,हर आंसू, लेकिन रहा बेअसर।
दिल के हम अमीर थे,रूह से फ़कीर थे,
किसी ने दी बद्दुआ,लुटा दिल का नगर।
इश्क़ आंसां नहीं, इम्तिहान है हर कहीं
संभल जाओ अभी, मुश्किल है ये सफ़र।
सुरिंदर कौर