इश्क की गलियों में
कोई नहीं है यहाँ,
किसे सुनाऊँ मैं,
कभी बाहर, कभी भीतर,
रहूँ बेचैन मैं ।।
ये इश्क की गलियों में ,
मैंने बस तेरा ही ख्वाब देखा है ।
बहुत मुश्किल से जान पाया,
कि तेरा नाम सुरेखा है ।।
जब से तुम्हें देखा हूँ,
मैं हो गया हूँ पागल ।
तेरे नैनों के चोट से जानम,
मैं हो गया हूँ घायल ।।
कभी बातें करो,
कभी मुलाकातें करो,
यह नहीं कि, तुम तड़पती रहो,
मुझे तड़पाती रहो ।।
गर मोहब्बत करना गुनाह है ,
ये इश्क की गलियों में ।
तो शांत रहना ही सिखा दो हमें,
इन वादिये फिजाओं में ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण
तारीख – 21/01/2021
समय – 10:54 (रात्रि)
संपर्क – 9065388391