इश्क़
अपना हमें, बनाते क्यों नहीं….
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राज ए दिल’ कोई,बताते क्यों नहीं।
इश्क गर है तुम्हे जताते क्यों नहीं।
कब तलक यूँ ,छुपाओगे इन अश्कों को
रुख से पर्दा कभी, हटाते क्यों नहीं
ये गिले शिकवे यूँ ही चलते रहेंगे,
रूठे है हम तो, तुम मनाते क्यों नहीं।
है तलब, गर उतरने की इस रूह में
तो सीने से, हमें लगाते क्यों नहीं।
अब न जाये सहा,औ दर्द-ए-दिल सनम,
देव’अपना हमें, बनाते क्यों नहीं।
शायर देव मेहरानियाँ
अलवर, राजस्थान
(शायर, कवि व गीतकार)
slmehraniya@gmail.com