“इश्क़ वर्दी से”
है इश्क़ मुझे वर्दी की चमक से,
निडर चले थे जो कभी कदम मेरे उन क़दमो की धमक से,
साहस भरे उन पलों से,
मुस्तैद तैनात उन रातों से,
देश की हिफाज़त करने फ़िर से सरहद में जाऊँगा,
कश्मीर से सियाचिन की ऊंचाइयों को फ़िर से छुह के अपने शौर्य का परचम लहराउंगा,
आसमां के सितारों को वापस अपने कंधे पे खिंच लाऊँगा,
मैं फ़िर से फौजी कहलाऊँगा।
“लोहित टम्टा”