*इश्क़ न हो किसी को*
मैं तो कहता हूँ कि
ये इश्क़ न हो किसी को
ये कहानियों में अच्छा लगता है
कभी हो न ये किसी को
गर हो गया ये इश्क़ तो
उम्रभर दर्द देगा तुझे, शिव
कहेगा ये ज़माना पागल तुम्हें
तू रोक न पाएगा किसी को
कितनों को लूटा है इसने
छोड़ा नहीं है किसी को
जिसने भी इसको अपनाया
हंसाया नहीं है किसी को
किसी को बेवफ़ाई मिली
किसी को रुसवाई मिली
बरबाद कर दिया है सबको
बसाया नहीं है किसी को
तड़पाया है दिलों को
रुलाया है किसी को
सताया है मासूमों को
फँसाया है किसी को
समझा रहा है ये शिव
मत पड़ तू भी इश्क़ में
कौन जाने तेरा भी अंजाम हो यही
पता नहीं है किसी को
जब जानते हो तुम
कोई नहीं बचा पाएगा अब तुम्हें
फ़सकर रूप के जाल में
क्यों आवाज़ देते हो किसी को
है सामने तेरे न जाने
कितने ही उदाहरण
फिर भी इश्क़ में पड़ना चाहते हो
क्यों होश नहीं है किसी को।