इश्क़ जब बेहिसाब होता है
इश्क़ जब बेहिसाब होता है
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इश्क़ जब बेहिसाब होता है
हिज्र भी लाजवाब होता है
तेरा चेहरा है बज्म मे ऐसा
जैसे गुल में गुलाब होता है
बात चुभती है उसकी अच्छी भी
जिसका लहजा खराब होता है
मां के दामन को याद करती हूं
सर पे जब आफताब होता है
भूल जाता है इंकेसारी जो
उसका खाना खराब होता है
जितना औरों पे तंज़ करता है
उतना वो बेनकाब होता है
प्यार से देखता है जब कोई,
रुख़ पे दिलकश शबाब होता है।
बज़्म-ए-उल्फ़त में आज भी ऐ ‘शमा’
आपका इंतेख़ाब होता है।
शमा परवीन बहराइच उत्तर प्रदेश