इश्क़ जंजाल
सब्र करते नहीं बनता कुछ हाल ही ऐसा है
इश्क-ए-उल्फ़त का कुछ ख्याल ही ऐसा है
लाखों कोशिशें करली हैं, सुलझाने की मैने
कबसे उलझा हुआ हूं, ये सवाल ही ऐसा है
आजाद सच में, ये खूबसूरत धोखा है मित्र
राजी राजी फंस गया ये जंजाल ही ऐसा है
कवि आजाद मंडौरी