इश्क़ का पिंजरा ( ग़ज़ल )
इश्क़ का पिंजरा “-
हर पल…. उन्हें बस याद करते हैं ।
हम वक़्त….. कहाँ बर्बाद करते हैं ।।
बस…… उनके तसव्वुर से अपना ।
आशियाना…….. आबाद करते हैं ।।
चुपचाप….. सह लेते हैं सारे सितम ।
ख़िलाफ़ उनके कहां जेहाद करते हैं ।।
ख़ुद रहते हैं……. इश्क़ के पिंजरे में ।
बस परिंदों को हम आज़ाद करते हैं ।।
“काज़ी”……… चाहत की जादूगरी से ।
रंज के लम्हों को भी….. शाद करते हैं ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
©काज़ीकीक़लम
28/3/2 , अहिल्या पल्टन , इकबाल कालोनी
इंदौर , जिला-इंदौर , मध्यप्रदेश