इश्क़ का असर
उनवान ( शीर्षक )- ” इश्क़ का असर
तेरी मुहब्बत का असर दिखता है ।
बियाबां में भी हरा शजर दिखता है ।।
दस्तक देता है यादों के दरवाज़े पर ।
शख़्स वही हर घड़ी हर पहर दिखता है ।।
उनकी अनदेखी दिल पर असर करती ।
आब के प्याले में भी मुझे ज़हर दिखता है ।।
डूबा रहता हूँ उनके ख़्यालात में हर पल ।
वो कहकशाँ तो मुझे शब ओ सहर दिखता है ।।
न हो जिसमें हुस्न ए यार का ज़िक्र ” काज़ी ” ।
ग़ज़ल का वो मिसरा मुझे बे-बहर दिखता है ।।
© डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , शायर
©काज़ीकीक़लम