*इश्क़ इबादत*
हो अगर प्यार में तुम किसी के
ये ज़िन्दगी जन्नत से कम नहीं
हो तुम महबूब की बाहों में अगर
तो मरने का भी कोई ग़म नहीं
यही तो होती है इश्क़ की माया
महबूब को याद करना पूजा से कम नहीं
आता नहीं एक भी दिन जीवन में
जब उसकी याद में ये आंखें नम नहीं
मिले हो इश्क़ में आंसू भी अगर
देखते ही महबूब को उनकी खबर नहीं
है ये ज़िंदगी शरीर तो आत्मा है इश्क़
इश्क़ के बिना ये ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं
फिर भी इश्क़ को जाने क्यों कोसते हैं लोग
कहते हैं इश्क़ सा कोई रोग नहीं
जानते नहीं, एकाग्रता बढ़ जाती है ध्यान के बिना
इश्क़ से बढ़कर कोई योग नहीं
मिलता है जो सुकून उसकी आंखों में देखकर
ढूंढकर भी मिलेगा कहीं और नहीं
चाहते हो अगर जन्नत की सैर का आनंद
लेट जाओ सिर रखकर आँचल में उसके
कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं
उसका मुस्कुराता चेहरा देखकर
और कुछ रह जाता याद नहीं
जानता है दुश्मन है ज़माना इश्क़ का
लेकिन उसे तो कोई फ़िक्र नहीं
वो तो जीता है सिर्फ़ महबूब के लिए
एक दूसरे को छोड़कर अब वो जाएंगे नहीं
एक जान हो गए हैं इश्क़ में वो
अब एक दूसरे के बिना रह पाएंगे नहीं।