इशारे
सुबह तुमने जब
मुँह बनाते हुए
चाय का कप
और अखबार रखा।
चाय से
निकली तुम्हारे
गुस्से की गर्माहट
चश्मे पर
जाकर बैठ गई।
अखबार की लाईने
धुंधलाती गई।
शायद मार्च महीने की
व्यस्तता से चिढ़ी बैठी थी तुम।
या फिर तुम्हारी
काल रात,
इक्का दुक्का सफेद
बालो से ,
फिर कुछ कहा सुनी हुई होगी?
और उन्होंने तंज कस दिया होगा
इन पर नज़र रखा करो!!!
मैंने तय कर लिया
आज आफिस से लौटने के बाद
खाना बाहर खाएंगे,
और कल सुबह की चाय
तुम्हे बिस्तर पर मिलेगी।
चश्मे पर लिपटी
तुम्हारी अनकही शिकायतें
अब धीरे धीरे
गुम होती जा रही थी।