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14 Jul 2017 · 1 min read

इलाही रहम कर मुझ पर

इलाही!!!
रहम कर मुझ पर
मेरे सीने में फिर से दर्द उठता है
सुलगता है अलाव की तरह

मेरी पलकों से कुछ उम्मीदें आंसू बन के यूँ झड़ती हैं जैसे सूखे पत्ते शाख़ से झड़ते हैं पतझड़ में।
मेरे एहसास और जज़्बात बच्चों की तरह रोते बिलकते हैं
मेरे टूटे हुए सपने
निगाहों में यूं चुभते हैं के जैसे काँच चुभता है।
मेरे अरमाँ मेरी आहों की सूरत ले के
इस दिल से निकलते हैं
मेरी कुछ ख़्वाहिशें अब भी मचलती हैं तड़पती है मेरे दिल में के जैसे मछलियां पानी से बाहर आ गई हों।
तनफ्फुस का अमल लगता है यूँ जैसे
के मेरी रूह पर कोड़े कोई बरसा रहा है।
बदन यूँ सर्द है
जैसे लूह नाब्ज़ों में मेरी जम गया है।
मेरी बेचैनियों का ऐसा आलम है के बस तौबा।

इलाही रहम भी कर अब
इलाही रहम भी कर
मुझे भूला हुआ इक शख़्स फिर याद आ रहा है।
मुझे भूला हुआ इक शख़्स फिर याद आ रहा है।

Language: Hindi
269 Views

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