इलाज
आशिकी को
होश आया
जब चारागर ने
यूं कहा
तुम बेवजह
टांग क्यूँ हिलाते हो।
तकिया भी पांव पर
सुलाते हो।
दोस्तों के
साथ तुम्हारी ये महफिले क्यूँ सजती है
बताओ तो,
खाते हुए ये दांत
और रात मे
नाक किस खुशी मे बजती है
गीला तौलिया आज फिर बिस्तर
पर मिला है,
ड्राइंग रूम का पंखा भी
सारी रात चला है।
बिना बात के क्यूँ
करवटे बदलते हो
चप्पलें शोर करती है
तुम जब चलते हो।
पैंट के साथ शर्ट
गलत ही चुनते हो
बताया क्यूं नही
बहरे हो ऊंचा सुनते हो
बच्चे बिगड़े है
तुम्हारी ही करनी धरनी है
कल आखिरी दिन है
गुड़िया की फीस भरनी है
छत पर तुम किस
खुशी मे जाते हो
दाना चुग तो लिया
अब किसे बुलाते हो
“अजी सुनते हो” की
जगह मिल रहे ये ताने हैं।
मर्ज भी ठीक हुआ
अब अक़्ल भी ठिकाने हैँ!!