इरादा -ए- वस्ल-ए-यार है मौसम जैसा भी हो
इरादा -ए- वस्ल-ए-यार है मौसम जैसा भी हो
में कुछ देर को जी लूं बाद-ए-हाल जैसा भी हो
मिले कुछ तो सुक़ूं दिल को बेरंग सी दुनियां में
हरसू समां हो फूलों का कभी तो ऐसा भी हो
नाकाफ़ी है बाप होना आज के इस दौर में
ये ज़रूरी हो गया की हाथों में पैसा भी हो
उसे मान ही लेंगे खुदा शर्त मगर इतनी है
हू-ब-हू न सही मगर हां कुछ कुछ तो वैसा भी हो
तज़र्बे से गर कुछ जाना तो यही जाना मैने
हमसफ़र हसीन हो चाहे रास्ता कैसा भी हो
भूल जाना ही है यारो जवाब – ए – बेवफ़ाई
क्या ज़रूरी है के जैसे को तैसा भी हो
किसका फसाना नया है किसका जुदा है ‘सरु’ से
साँसों की तार खींचता है शख़्स जैसा भी हो