इमाराती प्रवासी का दर्द
रे मन
रे मन तू न हो उदास
बढ़ने दे अपने मन की प्यास
छू लेने दे जीवन का पारवार
फैला मन को अपरंपार।
जीवन यूं ही बीतेगा
तू भला क्यों रीतेगा?
वीरान रेत में खोज तू
हरियाली खुशियाँ
डाल दुखों के गलबहियाँ
बहने दे दुरूह अश्रु की नदियाँ
जम न जाने दे खुशियाँ,
जम न जाने दे खुशियाँ,
बदलेगा फिर ये मौसम
छंट जाएँगी काली बदलियाँ
रे मन तू न हो उदास
बढ़ने दे अपने मन की प्यास
छू लेने दे जीवन का पारावार
फैला मन को अपरम्पार।
रे मन तू न हो उदास
बढने दे अपने मन की प्यास ……
मीरा ठाकुर