इबारत जो उदासी ने लिखी है-संदीप ठाकुर
इबारत जो उदासी ने लिखी है
बदन उस का ग़ज़ल सा रेशमी है
परिंदा उड़ गया लेकिन क़फ़स में
उदासी हर तरफ़ बिखरी पड़ी है
किसी की पास आती आहटों से
उदासी और गहरी हो चली है
उछल पड़ती हैं लहरें चाँद तक जब
समुंदर की उदासी टूटती है
उदासी के परिंदो तुम कहाँ हो
मिरी तन्हाई तुम को ढूँढती है
मिरे घर की घनी तारीकियों में
उदासी बल्ब सी जलती रही है
उदासी ओढ़े वो बूढ़ी हवेली
न जाने किस का रस्ता देखती है
उदासी सुब्ह का मासूम झरना
उदासी शाम की बहती नदी है
संदीप ठाकुर