इबादत क्या करू
ठेस पहुंचे किसी को ऐसी हिमाकत क्या करू
गम मिले है जो मुझे उसकी शिकायत क्या करू
जिदंगी कागज के नोट कमाने मे गुजार दी हमने
आज महसुस हुआ जब निकल गया वक्त क्या करू
बिन कहे ही बाते उसकी समझ सब जाता हूॅ मै
चेहरा मुस्कुराये उसका ओर इबादत क्या करू
अब वो निशां भी नही दिखते कही हम क्या करे
होश वालो की दुनिया मे मै मुहब्बत क्या करू
प्यार उनको हमसे होता तो वो यूं ना जाते कभी
शर्म आंखो की नही तो जा अदालत क्या करू
है हजारो ख्वाहिशे मेरी हर ख्वाहिश बडी है
खुद करू हासिल गर खुदा की रहमत क्या करू