इन्सानी रिश्ते
इंसानी रिश्ते
इंसान रिश्ते क्यों बनाता है ?
एक दूसरे का साथ क्यों निभाता है ?
सिर्फ हँसने या रोने के लिए ?
कुछ पाने या कुछ खोने केलिए ?
जो कुछ पाता है वही सब गँवाता है
खुद लकीरें खींचता है
खुद ही मिटाता है
फिर इंसान रिश्ते क्यों बनाता है ?
एक दूसरे का साथ क्यों निभाता है ?
एक दूसरे के लिए इस्तेमाल होती ,
सीढ़ी से हैं , जब सब
खुदगर्ज सी होती पीढ़ी है अब
कोरे आँसू हैं दर्द के दाम पर
फीकी हँसी है खुशी के नाम पर
जब तोड़ना ही है
तो क्यों जोड़ता , घटाता है
फिर क्यों इंसान रिश्ते बनाता है ?
एक दूसरे का साथ क्यों निभाता है ?
मौहब्बतों से खाली , ये झूठ की है दुनिया
नापता और तौलता हर आदमी है बनिया
झुकने का शौक किसको
सब चढ़ना चाहते हैं
पीछे की किस को चिंता
आगे बढ़ना चाहते हैं
क्यों वक्त को हम कोसें
जब खुद का ही ईमान बदल जाता है
फिर भी इंसान रिश्ते बनाता है
फिर भी इंसान रिश्ते बनाता है ।।
सीमा वर्मा