आसान नहीं होता…
आसान नहीं होता ,
अकेले सच का अडिग रहना
और झूठ से लड़ जाना।
आसान नहीं होता,
कटे हुए पंखों के साथ
आसमान में उड़ान भर जाना।
हाँ, आसान नहीं होता।
अन्धेरे धुंधलके में छिपे
सायों को पहचान पाना और
उनसे बच के निकल जाना ।
आसान नहीं होता,
तमाम उम्र एक इंसाफ की आस में रह जाना
आँखों के सामने इन्साफ को बिकते हुए देखते जाना।
और बेबसी से हाथ मलते रह जाना।
आसान नहीं होता
सारे सुखों को तिलांजलि देना
सिर्फ एक मकसद के लिए आगे बढ़ते जाना।
आसान नहीं होता
अपने पैरों के घावों के साथ
काँटों पे चलते जाना।
आसान नहीं होता माँ के लिए
अपने पंखों के नीचे
निरीह शावकों को बचाकर रख पाना।
आशियां को सजाये रख पाना।
आसान नहीं होता, आसान नहीं होता।
इस बेरहम जालिम दुनिया में
न्याय के लिए लड़ते जाना।
आसान नहीं होता,
जादू टोने और हसद की
तिलिस्मी दुनिया से बच कर जी जाना
हर सुबह एक नये संघर्ष से लड़ने के लिए
खुद को तैय्यार करना
और
जिंदगी की आस को जिन्दा रख पाना।
बन्द आँखों के खौफनाक सपनों का सच हो जाना
फ़िर खुली आँखोँ से उनकी काट निकाल पाना।
रात की खामोशियों को बस सहते जाना।
हाँ आसान नहीं होता ,बिल्कुल आसान नहीं होता
सब कुछ बयाँ कर पाना,
कि जिंदगी के रास्तों की खामोशी बात करती है।
कि माज़ी की कलम पूरी किताब लिखती है।
आसान नहीं होता
उम्मीद को जिंदा रख पाना
और रब का शुक्र अदा करते जाना।
–डॉ0 सीमा वर्मा ( कॉपीराइट)