इनकी भी सुनें
खिलते गुलाब की
खिलखिलाहट
उनकी मनमोहनी
मुस्कुराहट
उनकी पंखुुड़ियों की
नरमाहट
और खुशबू-
कितनी संवेदी और
आनंददायक है
सहेजो-
समेटो
जी-भरकर समेटो
ऐसी कोमल संवेदनाओं
और आनंददायी अनुभूतियों को
लेकिन
आओ जरा
उन झरती पत्तियों
की झिरमिरी को भी सुनें
जो-
जीवन-ताप सहकर
मौसमों की थपेड़ें खाकर
दुनिया को आनंदित कर
अब हो रहीं
अनंत में विलीन
नई कोपलों को
वारिस बनाकर
नवजीवन देकर.