इत्तफ़ाक
आज तो वक़्त भी हैरान परेशान उलझा है,
शब्द शब्द निःशब्द हो दिल में थमें पड़े है,
इत्तफ़ाक से रिश्तों में दिल उलझा हुवा है,
जानता हूँ मेरा दिल आज के परिपेक्ष नहीं है,
दिल हो मेरा भी काला मेरी फ़ितरत नहीं है,
उदासी का आलम है जुबाँ क्यूँ ख़ामोश है,
सोंचता हूँ रिश्तों के मायनें सब इत्तफ़ाक है,
दुनियाँ की भरी भीड़ में तन्हां रहता हूँ,
रब मेरे ग़र है तो सुन ये इत्तफ़ाक कम रखना है,
दिल कालो से तो मैं तन्हां रहना पसंद है,
दूध से जला हूँ मैं छाछ भी नहीं पीता हूँ,
आज तो वक़्त भी हैरान परेशान उलझा है,
शब्द शब्द निःशब्द हो के दिल में थमें पड़े हैं।।
मुकेश पाटोदिया”सुर”