इतने बड़े जमाने में ____
उसे मालूम ही नहीं कितना धन है उसके खजाने में ।
देखता हूं गरीब पसीना कितना बहाता उसे कमाने में।। तन ढंक जाए तो भूख की फिक्र सताती रहती हमेशा।
कहां मिला है मददगार कोई उसे इतने बड़े जमाने में।
परिश्रम की पूंजी से भर ली उसने मन की तिजोरी।
मिट्टी से सने पाव सकुचाता हाथों के छाले बताने में ।।कोठियां बनाकर भी रोटियों को तरसता रहा वह।
बरसे नीर अंखियों से मजबूरी का देर कहां लगे आने में
धन से प्यार किया जन से भी करके देखिएगा जरा ।
डराओ मत मजा क्या आता है तुम्हे उसे सताने में।।
छोड़ जाओगे बिन बताए किसी दिन जहान से।
महानता “अनुनय” जाने से पहले कुछ छोड़ जाने में।।
राजेश व्यास अनुनय