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15 May 2024 · 1 min read

इतने दिनों के बाद

कितने बहके क्षण न बेला महकी I
किस रीते पल कोयल न चहकी II
सपनों में चाँदनी से झिलमिलाई याद।
आज खुल के हँसे कितने दिनों बाद II
सजीव हो गई वह अद्भुत धरा,
अपनी बाहों में अरमानों को समाई।
हर पल रंगीन, हर ख्वाब सजीव,
चारों ओर सुनहरी छटा छाई II
घुल गए हम, अपनी ही मिटटी में
विश्वासहीन प्रेम की कोरी चिट्ठी में ।
क्या बताएं, वो लम्हे थे कितने अनमोल
हर ख्वाब की खुशियों को खरीदे मोल II
ज़िंदगी ने जिन्हें चुरा लिया दबे पाँव
शरीर की कुटिया में मासूम धूप- छाँव II
खोज मानो रेत के पर्वतों में हरियाली
जल के राख हुई सपनों की पराली II
आज कुछ और पल फिर करें बर्बाद
न याद , न आबाद -इतने दिनों के बाद !

Language: Hindi
91 Views
Books from Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
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