इक बार नहीं मैने उसे सौ बार कहा
इक बार नहीं मैने उसे सौ बार कहा
इश्क़ आतिश है उसने आबशार कहा
मुख़्तसर कहा बेखौफ़ और दमदार भी
बयाँ जो भी किया दिल का इसरार कहा
निगाह में जाने किस खुशी का दरिया है
इस गम से भरी दुनियाँ को गुलज़ार कहा
उठ के चलें तूफ़ाँ कुछ देखते नहीं
बेचैनियों को उसने हाय क़रार कहा
मज़बूरियाँ होती हैं ऐसी भी ज़ीस्त में
हालात को ही जन्नत के दीदार कहा
गुलशन-ए- उल्फ़त में बिखर जाते टूट के
गुल को महक- हवाओं ने इंतज़ार कहा
बेहुनर ही हाय रश्क़ होता है खुद पर
‘सरु’ सी मुफ़लिस को उसने शहरयार कहा